हिन्दु कौन….!! विकास प्रसाद लोध

Mr. Vikash Prasad Lodh [Musafir]

Vikash Prasad Lodh is the youngest Social Activist and politician of Nepal. He was involved in social services at an early age of 19. He is also Writer Auther and Analyzer in different Issues. which published on different platforms.

Archive


Tags


“एक अध्ययन समाग्रीः

हिन्दु कौन?
धर्म शास्त्रको मान्ने वाला या अवहेलना करने वाला?
श्रीमद्भाग्वत, गिता जी, वेद, उपनिषद को मान्ने वाले हिन्दु है या नही मान्नेवाले ?

आजकल रेडिमेट हिन्दु हो गए हैं, जो केवल किसि अन्य धर्मका विरोध करके अपने ही लोगों को अक्षुत वनाकर खुदको वडा दिखाकर हिन्दु वन्ते है।
“पढेक कहिदो तो हनुमान चालिसा नाई पढे पोईहैं, गिता वेद उपनिषद पुछ लो तो कहिहै इ काव हो? तर्क अइसन करिहै जैसे धर्मके सव से वडका ज्ञानी यनहीं होय”।

विगत एक हप्ता से वहस चला लेकिन केहु तर्क लैके नाई आइल जे आइल तो वस ईर्स्या, द्वेष, अभिमान लैके आईल, विना तथ्य के कुतर्क लैके आइल, यह से इ साफ पता चलतवाय की ई लोग खाली नारा लगावे वाले लोग होय, जैसे नेतन के झोले लोग नतन के पिछे नारा लगावले आँख वन्द कैके वस वही प्रकार के इ लोग धार्मिक झोले होय, जेके कुछ पता नाई है धर्म का हो, वर्ण का हो, जात का हो, वस विकास पोस्ट कैदिन अव कमेन्ट करो॥
——————————————————————-
व्राहमणः जन्म से की कर्म से?
लोगन के तर्क रहा हम व्राहमण होई व्राहमण के विरोध काहे करत हो?
विकास व्राहमण वनेक खोजत है, व्राहमण के विरोध के लोग हिन्दु के विरोध के रुप में भी लिहिन इत्यादी इत्यादी वात सब भईल, वहुत लोग तर्क वितर्क झगडा गालीगलौंज तक किहिन (औकात देखाएँ) औकात काव की हम केतना जानकार हन, हमरे केतना जारकार केहु नाई वा, हम व्राहम कुल मे पैदा भएक नाते जन्मवे से ज्ञानी होई चाहे स्कुलीक मुहों नदेखेहोय।

हमार धारणा यी होय की खाली समय में पढो, कौनो विषय मे वोले से पहिले वह विषय में जानकीरी लैलो, वह विषय के ज्ञान लैलो, हर जगह थेथरई नाई काम करला यह नाते अध्ययन जरुरी वा अध्ययन करो, और जे पढालिखा लोग है उ लोगन से हमार कहनाम का होय की तनिक धर्म शास्त्र के ज्ञान भी रख्खा करो, पढालिखा गवार वनेक सौक न पालो।
सुझाव यतनै रहा मानो नमानो मर्जी हम जवाफ देवेक नाई सोचेन कारण केहु गैर नाई हो लेकिन दुसर केहु नाई छोडी और वेइजत होईजावो तो हमरो मान हानी होई – तो भैया आपन करावो लेकिन आपने लोगन के वचावो तोहरे कारण हम्मन के वेइजत नहोय-

अब प्रमुख मुद्दा पर ध्यान दिहल जाएः-

हिन्दु के…….?
धर्मशास्त्र के वात मानेवाला की न मानेवाला?

भागवत, गिता, वेद, पुराण, उपनिषद ही हिन्दु धर्म के प्रमुख स्तम्भ होय, इ वात से भरसक केहु इन्कार नाई करी जे हिन्दु रही। सनातन धर्म के इ तमाम ग्रन्थ के आधार पर सनातन कय संरक्षण होला व्याख्या होला, कहलजाय तो इहै ग्रन्थ होय जे सनातन के आज तक राह देखाए वाय इ ग्रन्थ हैं तो सनातन है अइसन लोगन के या कहल जाय हमसब के मान्यता होय।

अइसन पवित्र सनातन के धर्मग्रन्थ पर आस्था विश्वास न करेवाले लोग हिन्दु नाई होय आइसन हम मानिला, जे भी इ धर्मग्रन्थ में लिखल वात से के इन्कार करी, नाई मानी वह पर विश्वास नाई करी, ओकरे उल्टा जाई उ वास्तव में सनातन मानेवाला नाई हो, उ हिन्दु नाई हो, अइसने लोगन के हिन्दु कहव मानब् इ दुनो आपने धर्म के साथे घात करब होय।

वर्ण व्यवस्था (जात) जन्म से की कर्म से?

खास कैके लाखौं बर्ष से जे स्वम के सनातन कय ठेकेदार के रुप में स्वधोषणा करे हैं उ लोगन पर विशेष चर्चाः

का जात जन्म से होला?

व्राहमण क्षेत्री वैस्य शुद्र के निर्धारण माई के कोख से ही होला (होएक चाही) आइसन नियम वा सनातन के धर्म ग्रन्थ में?

तो आवल जाए सनातन धर्म के प्रमुख ग्रन्थन (श्रीमद् भाग्वत जी, गिता जी, वेद, पूराण, उपनिषद) में यह विषय में का नियम वा जानल जाएः

  1. ऋग्वेद (10.90) — पुरुषसूक्तम्
    यह सूक्त वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति से संबंधित है।
    श्लोक:
    ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत्, बाहू राजन्यः कृतः।
    उरु तदस्य यद्वैश्यः, पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥

    भावार्थ: उस परम पुरुष (पुरुष सूक्त के अनुसार विराट पुरुष) के
    • मुख से ब्राह्मण,
    • भुजाओं से क्षत्रिय,
    • जंघाओं से वैश्य,
    • चरणों से शूद्र उत्पन्न हुए।
    यह प्रतीकात्मक है — यह कर्म और कार्यक्षेत्र की रूपक है, न कि जन्म की व्यवस्था।
    • मुख = ज्ञान, उपदेश, मन्त्र – ब्राह्मण
    • बाहु = शक्ति, शासन – क्षत्रिय
    • जंघा = व्यापार, उत्पादकता – वैश्य
    • चरण = सेवा, आधार – शूद्र
    यहाँ जन्म का उल्लेख नहीं है, “शरीर के अंग” कर्म/भूमिका का संकेत करते हैं।
  2. यजुर्वेद (Chapter 26, Mantra 2)
    श्लोक:
    यस्य पूरुषे ब्राह्मणो राजन्य: शूद्रस्तदस्यां वणिक्।
    यः स्वं पूषा विब्राह्मणं ब्रह्मा हि नम्यं भवेत्॥

    भावार्थ: जो मनुष्य ज्ञान, यज्ञ, सेवाभाव, और तप करता है — वही ब्राह्मण कहलाता है। यह भी कर्मप्रधान दृष्टिकोण को दर्शाता है।
  3. अथर्ववेद (19.6.6)
    श्लोक:
    ब्राह्मणो न मृत्यवे। क्षत्रियस्तदब्रवीत्।
    कर्मणा जायते ब्राह्मणः॥

    भावार्थ: ब्राह्मण कोई जन्म से नहीं बनता, बल्कि कर्मों द्वारा ब्राह्मण होता है।
  4. शतपथ ब्राह्मण (14.4.2.23) (वैदिक ब्राह्मण ग्रन्थ, यजुर्वेद का हिस्सा)
    श्लोक:
    न वै ब्राह्मणो ब्राह्मणस्य गर्भे भवति, ब्रह्मचर्येण वा ब्राह्मण्यम्।
    भावार्थ: ब्राह्मण, ब्राह्मण के गर्भ से नहीं होता, ब्राह्मचर्य और ज्ञान से ब्राह्मणत्व प्राप्त होता है।
  5. वृहदारण्यक उपनिषद (4.4.5) (हालाँकि यह उपनिषद है, पर वेद की श्रेणी में ही आता है)
    श्लोक:
    एष एव ब्राह्मणः, यस्यैतत् ब्रह्म विदितं भवति।
    क्षत्रियः, वैश्यः, शूद्रः, योनिशु ये च के च।

    भावार्थ: वह ब्राह्मण है जिसने ब्रह्म को जाना है। चाहे वह किसी भी जाति में क्यों न जन्मा हो — ज्ञान ही ब्राह्मणत्व का आधार है।

“ब्राह्मण जन्म से नहीं, कर्म से होता है” – यह विचार सनातन धर्म के कई ग्रन्थों में प्रमाण सहित मिलता है। विशेषतः यह विचार महाभारत, भगवद्गीता, मनुस्मृति (कुछ अंशों में विरोधाभास सहित) और महापुरुषों के उपदेशों में देखा जा सकता है।

6.भगवद्गीता (Chapter 4, Verse 13)
श्लोक:
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्॥

भावार्थ: मैंने चार वर्णों की रचना गुण (स्वभाव) और कर्म (कार्य) के आधार पर की है। यहाँ स्पष्ट रूप से वर्ण व्यवस्था को जन्म नहीं, बल्कि गुण और कर्म के अनुसार बताया गया है।

  1. महाभारत (वणपर्व, 180 अध्याय, 20 श्लोक)
    श्लोक:
    न शूद्रस्तु भवेत् विप्रः न विप्रः शूद्रतां व्रजेत्।
    कर्मणा जायते विप्रः कर्मणा शूद्र उच्यते॥

    भावार्थ: शूद्र ब्राह्मण नहीं बनता, ब्राह्मण शूद्र नहीं बनता — परन्तु कर्मों के आधार पर ही कोई ब्राह्मण या शूद्र है।
  2. महाभारत (अनुसासन पर्व, अध्याय 163)
    श्लोक:
    जात्या ब्राह्मण एवेति, यः कर्म ब्राह्मणस्य न।
    स तु ज्ञेयः शूद्रसंगः, यः ब्राह्मणोऽप्यकर्मकृत्॥

    भावार्थ: यदि कोई जन्म से ब्राह्मण है, लेकिन ब्राह्मणोचित कर्म नहीं करता, तो वह शूद्र के समान है।
  3. महाभारत (शान्ति पर्व 189.7)
    श्लोक:
    वर्णा हि कर्मभिर्ये च, न जात्या न च संस्कृतैः।
    कर्मणैव हि वर्णानां, ब्राह्मण्यं संभवत्युत॥

    भावार्थ: वर्ण कर्मों से तय होता है, जन्म से नहीं। ब्राह्मणत्व भी कर्मों से ही प्राप्त होता है।
  4. मनुस्मृति (Chapter 10, Verse 65)
    (यहाँ विरोधाभास है, पर यह श्लोक कर्म आधारित वर्ण परिवर्तन को स्वीकार करता है।)
    श्लोक:
    वेदाभ्यासात् तपःसिद्धात् द्विजातिर्ब्राह्मणो भवेत्।
    वैश्यात्तु शूद्रतो वापि ज्ञानात्तु ब्राह्मणो भवेत्॥

    भावार्थ: जो वेदाभ्यास और तप के माध्यम से सिद्धि प्राप्त करता है, वह ब्राह्मण बन सकता है — चाहे वह वैश्य या शूद्र जन्म का ही क्यों न हो।
  5. भगवद्गीता (18.41–18.44) यहाँ वर्णों के गुण और कर्म स्पष्ट रूप से बताए गए हैं:
  6. ब्राह्मण के लक्षण (18.42):
    शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
    ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्॥

    भावार्थ: शांति, इन्द्रिय-निग्रह, तप, पवित्रता, क्षमा, सरलता, ज्ञान, विज्ञान और श्रद्धा — ये ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं।यह फिर से कर्म के आधार पर वर्ण का निर्धारण दर्शाता है।

अब बतावल जाए सनातन के सारा ग्रन्थ वर्ण व्यवस्था या कहल जाए जात व्यवस्था जन्म से नाई हो कर्म से निर्धारण होला अइसन कहत वाय तो तथाकथित लोग जे इ वात नाई स्विकार्य करत वाय या कहल जाए नाई मानेक तैयार होतवाय तो उ लोगन के हमरे कैसे कौने आधार पर हिन्दु या सनातनी के रुप में स्विकार्य करल जाए?

यदी उ लोग हिन्दु होतै, सनातनी होतै तो का अपने ही धर्मग्रन्थ कय वात नाई मन्तैं? अपने सनातन के कहल निर्देशन के पालना नाई कर्तै, खुद कय सनातन के रक्षक के रुपमें घोषणा करेवाले लोग, सनातन के सवसे वडका कहावे वाले लोग अपने ही धर्म ग्रन्थ कय अवहेलना कैसे कै सकत है? का आप कै सकत हो एक सनातनी होईके सनातन ग्रन्थ के अवहेलना विल्कुल नाई कैसकत हो काहे से आप हिन्दु हो और हिन्दु धर्मके ग्रन्थ के सर्व स्विकार्य करव हर हिन्दु कय कर्तव्य होय। लेकिन उ लोग जमाना से नाई करत हैं कार उ लोग हिन्दु या सनातनी होवै नाई करैं।

आब एक हिन्दु होईके नाई एक सनातनी होईके सोचल जाए…..!!

हिन्दु हो तो सनातन ग्रन्थ में लिखल वात सर्व स्विकार्य करो नाई तो हिन्दु होवेक ढोंग न करो—

तश्विरः राह चल्ते आदिवासी अपने पदचिन्ह मिटाते हुवे